Posts

लोहार जाति इतिहास

Image
लोहार वंश के कुल देवता श्री विश्वकर्माजी महाराज लोहारजाति विश्वकर्मा वंशज होने के कारण एक उच्चस्तरीय ब्राह्मण तथा लोहारराजवंश में उनका गौरवशाली इतिहास की वजह से वह कर्म से  क्षत्रिय भी है| Click to check - ( लोहारजाती के सम्पूर्ण साक्ष्य ) • पांचाल लोहार समाज की कुलदेवी कौन थी? प्रयास पांचाल जागृति संस्था के बैनर तले बांसवाड़ा के समीप पांचाल समाज की कुलदेवी त्रिपुरसुन्दरी देवी मंदिर के शिखर प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन 7 मई से शुरू होगा। • लोहार कौन सा वंश है ? लौहवंशी,  वर्तमान में राजस्थान,बिहार और उत्तर प्रदेश में निवास करने वाली लोहार जाति की एक गोत्र है। • लोहरराजवंश के किले का नाम? लोहारकोट्टा, कश्मीर   • लोहार का दूसरा नाम क्या है? वे धार्मिक आधार पर विभाजित हैं, हिंदू लोहारों को विश्वकर्मा और पांचाल लोहार के नाम से जाना जाता है। हिंदू लोहार कई बहिर्विवाही समूहों में विभाजित हैं, जिनमें से मुख्य हैं कनौजिया, पुरबिया, बहाई, मौलिया और मगजिया। • विश्वकर्मा लोहार का गोत्र क्या है? उनके नाम है – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ। ऋषि मनु विष्वकर्मा - ये "सानग गोत्र"...

सम्राट संग्रामराज परिचय

Image
राजा संग्रामराज  -  Click - राजा संग्रामराज    कश्मीर का वह भूला हुआ राजा जिसने महमूद गजनवी को करारी शिकस्त दी थी| लगभग 300 वर्षों तक बगदाद और तुर्की के मुस्लिम विजेताओं ने कश्मीर पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, जो उस समय एक मज़बूत हिंदू राज्य था। लुटेरे गजनवी का मान-मर्दन करने वाले—राजा संग्राम राज          राजा संग्रामराज लोहार - संस्थापक    विभूतियों के स्वामी की चित्त वृत्तियां कुमार्ग पर चल पड़ीं तो सर्व नाश उपस्थित हो गया। वह स्वयं न जीवन भर चैन से सोया न करोड़ों को उसने चैन की नींद सोने दिया। उसने भौतिक सम्पदा से सुख पाना चाहा। ज्यों-ज्यों धन मिलता गया त्यों-त्यों उसकी भूख बढ़ती गई। उसका दीन ईमान केवल पैसा रह गया। पैसे के भूखे हजारों नर पशुओं की विशाल वाहिनी सजा कर वह एशिया भर में लूट मचाने लगा। जिधर उसका रुख फिर जाता उधर कितने ही गांव श्मशान बन जाते, जीवन मृत्यु में और मुस्कान आंसू में बदल जाती। गजनी का यह दुर्दान्त दैत्य-लुटेरा महमूद गजनवी सत्रह बार भारत वर्ष में लूट मार करने आया। कई बार वह अकूल धन सम्पदा लूट कर ले गया। उसकी इ...

लौहार वंश के अंतिम शासक

Image
  लौहार राजवंश के शासक               लोहारराजवंश के शासको की सुचि  लौहारवंश का संस्थापक संग्रामराज था। संग्रामराज की बाद अनन्त पर इस वंश का शासक हुआ। उसके प्रशासन में उसकी पत्नी रानी सूर्यमती सहयोग करती थी। राजा संग्रामराज - (संग्रामराजा /क्षमापति) 1003 ई. दिद्दा का भतीजा। उसकी मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठा, और कश्मीर पर लोहारा वंश का शासन शुरू हुआ| हरिराज - 22 दिन 1028 ई. | राजाअनन्त  -   यह भी संग्रामराज के समान शक्तिशाली राजा था। इसने अनेक सामंतों के विद्रोहों का सफलतापूर्वक दमन किया तथा मुस्लिम आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। इसकी रानी 'सूर्यमती' प्रशासन के सुधार में उसकी सहायता करती थी। कलशा (राणादित्य द्वितीय) -  1063 ई. अपने माता-पिता के खिलाफ विद्रोह किया, जिसके कारण उनके पिता अनंत ने आत्महत्या कर ली, उसके बाद उनकी मां ने सती -आत्महत्या कर ली। उनके बेटे हर्ष ने उनके खिलाफ विद्रोह किया, और उन्हें कैद कर लिया गया। उत्कर्ष -  22 दिन 1089 ई. कलश का दूसरा पुत्र। उसके सौतेले भाई विजयमल्ल ने उसके खि...

लौहरराजवंश साम्राज्य

Image
  सम्पूर्ण लौहरराजवंश साम्राज्य लौहरराजवंश का विस्तार                 महारानी दिद्दा सम्राज्य 1003-1155CE

लौहरराजवंश पतन

Image
लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था। संग्रामराज की बाद अनन्त पर इस वंश का शासक हुआ। उसने अपने शासन काल में सामन्तों के विद्रोह को कुचला। उसके प्रशासन में उसकी पत्नी रानी सूर्यमती सहयोग करती थी। अनन्त का पुत्र कलश एक कमज़ोर शासक था। हर्ष- कलश का पुत्र हर्ष विद्वान, कवि एवं कई भाषाओं एवं विद्याओं का जानकार था। राजतरंगिणी का लेखक कल्हण, हर्ष का आश्रित कवि था। राज्य में आन्तरिक अशान्ति के कारण हुए विद्रोह में लगभग 1101 ई. में हर्ष की हत्या कर दी गयी। हर्ष को कश्मीर का 'नीरो' भी कहा जाता है। उसके शासन काल में कश्मीर में भयानक अकाल पड़ा था। उसके अत्याचारपूर्ण कार्यो से त्रस्त होकर उत्सल एवं सुस्सल नामक भाईयों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में हर्ष के पुत्र भोज एवं हर्ष दोनों की हत्या कर दी गयी। लोहार वंश का अन्तिम शासक जयसिंह (1128-1155 ई.) था। अपने शासनकाल में उसने यवनों को परास्त किया था। 1339 ई. में कश्मीर तुर्को के कब्जे में आ गया। जयसिंह कल्हण की राजतरंगिणी का अन्तिम शासक था। उसी के समय में राजतरंगिणी पूर्ण हुयी। तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक 'जैनुल आबदीन' था ...

कोटारानी

Image
कोटारानी ने खुद क्या चाहा, यह निश्चित रूप से उसकी जीवन कहानी है और उसके आस-पास के सिद्धांतों को क्या प्रेरित करता है? यह वही है जो किताब एक आकर्षक, शक्तिशाली सुंदर महिला और उसकी दुनिया के बारे में बहुत विस्तार से जांचती है। कोटा कश्मीरी संस्कृति की गहरी समझ को दर्शाती है जब वह अपने उत्तर पर विस्तार से बताती है कि "इच्छा - जो वासना में निहित है, दस इंद्रियों या अहंकार या भावनाओं का तत्काल मोह या सीमित मन की संतुष्टि कामदेव की तरह भस्म हो जाएगी, जो जुनून की दिव्यता है। इच्छा, जो धर्म के लिए किसी के सच्चे स्वभाव की एक वास्तविक पेशकश है, हमेशा के लिए प्रबल होगी, क्योंकि इच्छा तब स्थिरता के साथ एकजुट होती है।"                                  महारानी कोटारानी   कोटा रानी (d. १३३९) कश्मीर की अन्तिम हिन्दू रानी थी।वह उद्वनदेव की रानी थी। उनके पति की मृत्यु के पश्चात शाहमीर ने उससे विवाह करने का प्रयत्न किया। पर कोट रानी ने आत्म हत्या कर ली। कोटा रानी कश्मीर में हिंदू लोहारा वंश से संबंधित अंतिम शासक शासन...

महारानी दिद्दा

Image
रानी दिद्दा  :   कहानी उस वीरांगना की जिसने मोहम्मद गजनवी को चटाई धूल, दुश्मन कहते थे 'चुड़ैल रानी' सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए, वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल बुद्धि ही नहीं बल्कि बल में भी आगे हैं. वे अपने दम पर राज्य भी चला सकती हैं और युद्ध भी लड़ सकती हैं. वीरांगना दिद्दा ऐसा ही एक उदाहरण हैं. सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए. वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल ...

लौहारराजवंश

Image
लौहार राजवंश लौहरराजवंश के राजाओ का कश्मीर मे 150 वर्षो से अधिक तक शासन था| लोहारवंशज को भारत में लुहार, लोहरा और पांचाल के नाम से भी जाना जाता है| लोहार वंश भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में 1003 और लगभग 1320 सीई के बीच कश्मीर के हिंदू शासक थे। राजवंश के प्रारंभिक इतिहास का वर्णन राजतरंगिणी ( राजाओं का क्रॉनिकल ) में किया गया है, जो 12 वीं शताब्दी के मध्य में कल्हण द्वारा लिखी गई एक रचना है और जिस पर राजवंश के पहले 150 वर्षों के कई और शायद सभी अध्ययन निर्भर करते हैं।  Lohara dynasty            1003 CE–1320 CE राजधानी                            Srinagar प्रचलित भाषाएँ                   Sanskrit धर्म                                   Hinduism सरकार                            ...