रानी दिद्दा : कहानी उस वीरांगना की जिसने मोहम्मद गजनवी को चटाई धूल, दुश्मन कहते थे 'चुड़ैल रानी'
सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए, वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल बुद्धि ही नहीं बल्कि बल में भी आगे हैं. वे अपने दम पर राज्य भी चला सकती हैं और युद्ध भी लड़ सकती हैं. वीरांगना दिद्दा ऐसा ही एक उदाहरण हैं.

सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए. वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल बुद्धि ही नहीं बल्कि बल में भी आगे हैं. वे अपने दम पर राज्य भी चला सकती हैं और युद्ध भी लड़ सकती हैं. वीरांगना दिद्दा ऐसा ही एक उदाहरण हैं.
चुड़ैल रानी' के नाम से जानी गईं
didda life story the warrior queen of kashmir who defeated mahmud ghaznavi
कहा जाता है कि रानी दिद्दा के पास तेज दिमाग और बाजी पलटने का हुनर होने के साथ साथ युद्ध लड़ने की बेहतरीन कला भी थी. कई जगह ये उल्लेख भी है कि रानी दिद्दा ही भारत में गुरिल्ला युद्ध नीति की जनक थीं. तभी तो उन्होंने 35 हजार सेना की टुकड़ी का मुकाबला अपने 500 सैनिकों की टुकड़ी से किया और मात्र 45 मिनट में जंग जीत गईं. यही कारण रहा कि इस वीरांगना का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया. हालांकि उनसे जलने वाले कई पुरुष राजा उन्हें ‘चुड़ैल रानी’ के नाम से भी जानते थे.
इतिहास में दर्ज किस्सों के अनुसार रानी दिद्दा की बुद्धिमता, राजकाज चलाने की निपुणता और उनकी वीरता प्रभावित होकर उनके पति ने उनका नाम अपने नाम से पहले लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाने गए. रानी दिद्दा को ‘कश्मीर की रानी’ की रानी के नाम से भी जाना जाता है|
रानी दिद्दा: कहानी उस वीरांगना की जिसने मोहम्मद गजनवी को चटाई धूल, दुश्मन कहते थे 'चुड़ैल रानी'
सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए, वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल बुद्धि ही नहीं बल्कि बल में भी आगे हैं. वे अपने दम पर राज्य भी चला सकती हैं और युद्ध भी लड़ सकती हैं. वीरांगना दिद्दा ऐसा ही एक उदाहरण हैं.
रानी दिद्दा कहानी उस वीरांगना की जिसने मोहम्मद गजनवी को चटाई धूल दुश्मन कहते थे चुड़ैल रानी
सत्ता संभालना, युद्धकला सीखना, युद्ध लड़ना ये सब पुरुषों के कार्य बताए गए. वहीं महिलाओं को कमजोर समझा गया और वंश बढ़ाने व घर गृहस्ती संभालने से ज्यादा उन्हें और कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. तभी तो जब आप इतिहास के पन्ने पलटने शुरू करेंगे तो आपको गिनी चुनी ऐसी रानियां मिलेंगी जिन्होंने अपने दम पर शासन किया हो. लेकिन जिन महिलाओं को ये अवसर मिला उन्होंने साबित कर दिया कि वे केवल बुद्धि ही नहीं बल्कि बल में भी आगे हैं. वे अपने दम पर राज्य भी चला सकती हैं और युद्ध भी लड़ सकती हैं. वीरांगना दिद्दा ऐसा ही एक उदाहरण हैं.
'चुड़ैल रानी' के नाम से जानी गईं
didda life story the warrior queen of kashmir who defeated mahmud ghaznavi
Her Zindagi
कहा जाता है कि रानी दिद्दा के पास तेज दिमाग और बाजी पलटने का हुनर होने के साथ साथ युद्ध लड़ने की बेहतरीन कला भी थी. कई जगह ये उल्लेख भी है कि रानी दिद्दा ही भारत में गुरिल्ला युद्ध नीति की जनक थीं. तभी तो उन्होंने 35 हजार सेना की टुकड़ी का मुकाबला अपने 500 सैनिकों की टुकड़ी से किया और मात्र 45 मिनट में जंग जीत गईं. यही कारण रहा कि इस वीरांगना का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया. हालांकि उनसे जलने वाले कई पुरुष राजा उन्हें ‘चुड़ैल रानी’ के नाम से भी जानते थे.
इतिहास में दर्ज किस्सों के अनुसार रानी दिद्दा की बुद्धिमता, राजकाज चलाने की निपुणता और उनकी वीरता प्रभावित होकर उनके पति ने उनका नाम अपने नाम से पहले लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाने गए. रानी दिद्दा को ‘कश्मीर की रानी’ की रानी के नाम से भी जाना जाता है.
रानी दिद्दा 958 ई. से 1003 ई. तक कश्मीर की शासक थीं |
अपंग होने के कारण माता-पिता ने किया त्याग
रानी दिद्दा की किस्मत ने भी उन्हें जीवन के हर पड़ाव पर अलग अलग रंग दिखाए. राजकुल में जन्म लेने के बावजूद उनका पालपोषण एक नौकरानी के घर में हुआ लेकिन उनके भाग्य में लिखा राज योग उनसे कोई छीन नहीं पाया. एक नौकरानी के यहां पलने वाली दिद्दा की किस्मत ने एक बार फिर ऐसा रंग दिखाया कि वह रानी बन गईं.
नौकरानी के यहां पल कर भी युद्धकला में हुईं निपुण
कहते हैं एक समय था जब देश के हरियाणा, पंजाब और पुंज के हिस्से पर लोहार राजवंश का राज था. दिद्दा इसी राजवंश में जन्मी थीं. कहा जाता है बचपन से अपंग होने के कारण उनके माता-पिता ने उन्हें मां-बाप ने उन्हें त्याग दिया था. जिसके बाद एक नौकरानी ने उन्हें पाला. कहते हैं ना कीमती रत्न भले तिजोरी में हों या कीचड़ में उनकी कीमत पर एक रत्ती फरक नहीं पड़ता. दिद्दा के साथ भी ऐसा ही था, भले वो एक नौकरानी के यहां पली-बढ़ी मगर गुण उनमें योद्धाओं वाले ही थे. वो बड़ी हो कर युद्धकला में इतनी माहिर हो गईं कि पुरुष योद्धा भी उनके सामने टिक नहीं पाते थे.
कश्मीर के राजा को पहली नजर में हुआ प्रेम
दिद्दा के जीवन को एक नया मोड़ तब मिला जब एक दिन कश्मीर के सम्राट सेनगुप्त शिकार के लिए आए और उनकी नजर दिद्दा पर पड़ी. उन्हें दिद्दा को देखते ही प्रेम हो गया. जिसके बाद उन्होंने उनसे शादी करने का मन बना लिया. यहीं से दिद्दा के राजसी जीवन की शुरुआत हुई और वो रानी दिद्दा कहलाने लगीं. तमाम जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने राजकाज में भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया.
पति की मौत के बाद खाई कसम
उनके आने के बाद उनके सहयोग से साम्राज्य का विस्तार होने लगा. उनकी इस बुद्धिमत्ता और कुशलता पर सम्राट सेनगुप्त इतने मोहित हुए कि उन्होंने सम्मान के तौर पर रानी दिद्दा के नाम का सिक्का जारी कर दिया. सबकुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन समय ने अचानक तब करवट ली जब शिकार खेलने गए सेनगुप्त की मौत हो गई. उस दौर में पति की मौत के बाद उनकी चिता के साथ पत्नी के सती हो जाने की परंपरा चलन में थी. वो रानी दिद्दा ही थीं जिन्होंने यह नियम तोड़ा.
उन्होंने पति की मौत के बाद ये संकल्प लिया कि वह अपने राज्य को असुरक्षित हाथों में कभी नहीं जाने देंगी. इसके बाद उन्होंने अपने इस वचन को निभाने के लिए दिन रात एक कर दिया और जिस समय राजकाज संभालना पुरुषों का माना जाता था उस दौर में अपने शासन का सिक्का कायम किया.
मोहम्मद गजनवी को दो बार हराया
कहा जाता है कि हिंदुस्तान पर कब्जा करने का सपना देखने वाले खुंखार महमूद गजनवी 1025 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया. जिसके बाद उसने कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई. अपनी इसी सोच के साथ गजनवी आगे बढ़ा लेकिन उसे ये खबर नहीं थी कि वहां एक शेरनी उसके रास्ते में खड़ी है. जानकारी के अनुसार, रानी दिद्दा ने गजनवी की सेना से युद्ध लड़ा और अपनी बहादुरी के आगे उन्हें टिकने ना दिया. रानी दिद्दा ने ऐसी रणनीति अपनाई कि गजनवी को राज्य के दायरे में घुसने से ही रोक दिया. कमाल की बात है कि रानी ने ऐसा एक नहीं बल्कि दो-दो बार किया.
इस लिए नाम पड़ा रानी चुड़ैल |
रानी दिद्दा अपने पति की मौत के समय ही ये कसम खाई थी कि वो इस राज्य को किसी काबिल हाथों में सौंपेंगी. उन्होंने अपना ये वचन निभाने का भी एक बहुत अनोखा रास्ता चुना. जब उनकी उम्र ढलने लगी और सत्ता को काबिल हाथों में सौंपने की बारी आई तो उन्होंने अपने भांजों के बीच दिलचस्प प्रतियोगिता रखी. इस प्रतियोगिता में विजेता चुनने का नियम ये था कि जो सबसे ज्यादा सेब अपने हाथों में लेकर जाएगा उसे सत्ता की कमान सौंपी जाएगी. उन्होंने अपने इस तरीके से पराक्रम और बुद्धि दोनों को आंका.
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